क्या आपने कभी गाड़ियों से प्यार किया है?कभी उनसे बातें की हैं?कभी अपने साइकिल,बाईक,स्कूटर या फिर कार को आपने अपना बेस्ट फ्रेंड बनाया है? अगर नहीं तो आप एक बहुत ही अच्छे सुख से वंचित रह गए हैं.पटना में मेरे दोस्तों के अलावा चार स्पेशल किस्म के जो फ्रेंड थे उनमे दो टू-इन-वन,एक स्कूटर और एक साइकिल आते हैं. दो टू-इन वन जो थे वो फ़िलहाल सारा दिन अलमारी में पड़े रहते हैं, ना ही कुछ बोल सकते हैं और ना ही कुछ सुन सकते हैं.साइकिल मेरे बहुत ही करीबी दोस्त के घर पिछले सात आठ सालों से रह रही है..कभी उस दोस्त के घर जाता हूँ तो कुछ रोमांटिक बातें हो जाती हैं अपने साइकिल से.बचा एक स्कूटर, बजाज सुपर स्कूटर...हमारा बजाज वाला बजाज स्कूटर..जो अब बुढा हो चूका है लेकिन फिर भी हिम्मत बहुत है उसमे, अब भी भाग दौड़ कर लेता है.
अब भी जैसे धुंधली सी याद है, मैं चौथी या पांचवीं क्लास में था शायद..स्कूल में जिन दोस्तों के पास बजाज सुपर स्कूटर रहता था वो सब एक ग्रुप में नाचते हुए गाते थे..'बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर...हमारा बजाज..हमारा बजाज..'.इनमे कुछ ऐसे लड़के भी थे जिनके पास दूसरा कोई स्कूटर था और वो हमारे ग्रुप में आकार गाना गाते और नाचते थे, फिर एक दिन जब हमारे एक साथी ने देखा की उन लड़कों के पापा एल.एम्.एल वेस्पा से आते हैं तो उन्हें अपने ग्रुप से हमने निकाल दिया, यह कह कर की ये विदेशी है, गद्दार है, धोखे से हमारे ग्रुप में घुस गया था.हमें बड़ा नाज़ होता था खुद पर की हमारे पास वो स्कूटर है जिसका प्रचार दूरदर्शन पर दिखाया जाता है.जब पापा हमें घुमाने ले जाते थे तो हम बड़ा खुश होते थे की 'हमारा बजाज' वाले सुपरस्टार स्कूटर से हम घूमने निकले हैं.मन ही मन खुद को सड़कों का महराजा भी मान लेते थे, और एल.एम्.एल वालों से तो इतनी चिढ़ थी, हम सभी दोस्तों को की उस स्कूटर की सौ बुराईयां करते नहीं थकते थे.बुराई करने में कभी कभी मैं थोडा पीछे रहता था, क्यूंकि मेरे गाँव में बड़े पापा के पास भी एल.एम्.एल वेस्पा स्कूटर ही था, और वो मुझे बड़ा अच्छा लगता था ;)
अब भी अच्छे से याद है, जब हमारा स्कूटर थोडा पुराना हुआ और उसमे इधर उधर थोड़ी खरोंचे लगी तो पापा ने उसपर नया रंग चढ़वा दिया.पीला बजाज सुपर अब हरा हो गया था.कुछ दिन तो लगे इस नए हरे रंग को अपनाने में लेकिन मुश्किल जैसा कुछ भी नहीं था.स्कूटर नया हो गया था और हम हर रोज इसकी अच्छे से सफाई करते थे..जब मैं स्कूटर चलाना सीख रहा था, उस समय का एक वाकया याद आ रहा है...मेरे भैया मुझे स्कूटर सीखाने ले गए..सड़क पर एक आंटी जा रहीं थीं, और भैया मुझे बार बार ब्रेक लगाने को कह रहे थे, और मैं ब्रेक के बजाये बार बार होर्न बजा रहा था..भैया ने बहुत कोशिश कि की पैर नीचे रखकर स्कूटर को रोकें, लेकिन आंटी से टक्कर होना तय था तो हुआ..आंटी नर्म दिल कि थी, बिना ज्यादा गुस्सा हुए मुझे उन्होंने माफ कर दिया..स्कूटर सीखने के क्रम में ये मेरी पहली और आखरी टक्कर थी.
जब दसवीं में गया तो शाम के बाद स्कूटर की चाबी लगभग हाथ में ही रहती थी.अगल बगल से कुछ लाना हुआ तो भी स्कूटर से ही जाना होता था.स्कूटर और मेरे बीच दोस्ती भी लगभग उन्ही दिनों हुई जब मैं दसवीं में था और 'जॉन्डिस' बिमारी से उबरा ही था..हर शाम लगभग स्कूटर से ही कोचिंग जाता था, उस समय माँ मुझे साइकिल चलाने के लिए मना करती थी, कहती थी की थकावट हो जायेगी.फिर क्या था, शाम का शमां होता था.. स्कूटर और मैं..हम दोनों खूब बातें करते हुए, गाते हुए कोचिंग जाते थे.कोचिंग में अपना रुतबा भी ऐसा होता था की दोस्त लोग आगे पीछे घूमते रहते थे.."अभिषेक, ज़रा चाबी दो न, एक चक्कर लगा कर आयेंगे".."अबे यार बस उस कोना तक ही जायेंगे...चाहो तो तीन रुपया ले लो..उससे जादा का पेट्रोल नहीं जरेगा"... लगभग कोचिंग मैं हमेशा स्कूटर से ही जाने लगा..लेकिन फिर भी मुझे स्कूटर से स्कूल जाने की परमिसन नहीं थी...ये एक तमन्ना दिल में ही दब के रह गयी.मेरे ख्याल से उस समय मैं स्कूटर बड़े अच्छे से चला लेता था और पापा-मम्मी भी ये बात जानते थे लेकिन फिर भी मुझे स्कूल जाने की परमिसन नहीं मिलती थी(खैर इस बार घर जाऊँगा तो मम्मी से इस बात के लिए लडूंगा भी).
फिर जब मैं बारहवीं में था तब एक फिल्म आई थी "गॉन ईन सिक्सटी सेकण्ड".इस फिल्म से मैं बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ(अंग्रेजी में यह मेरी अब तक की सबसे पसंदीदा फिल्म है,पता नहीं किस कारण से..पचासों बार देख चूका हूँगा इस फिल्म को).उस समय मुझे कारों के बारे में जानकारी इकठ्ठा करने का शौक था और उसपर से रैंडल मेम्फिस रेन्स(फिल्म में अभिनेता निकलस केज का किरदार) की कारों की प्रति अविश्वसनीय दीवानगी मुझे अपनी तरफ हमेशा से खींचती चली गयी(कभी फुर्सत से इस फिल्म के ऊपर भी बहुत कुछ लिखूंगा).फिल्म के एक सीन में जब निकलस केज अपनी महबूबा एलेनोर(Eleanor,1967 Shelby GT500) से पहली बार बातें करता है तो उस पल को मैं वास्तव में महसूस कर सकता था(और हूँ).निकलस केज एलेनोर से कहता है "मैं जानता हूँ की मेरे वजह से तुम बहुत बार मुसीबत में फंसी हो, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा, वादा करता हूँ मैं...तुम मेरा ख्याल रखना और मैं तुम्हारा ख्याल रखूँगा".इस फिल्म में मैं निकलस केज और एलेनोर के बीच हुए संवाद को बड़े अच्छे से खुद से रिलेट कर सकता हूँ.उन दिनों मेरी और मेरे स्कूटर की भी कुछ ऐसी ही जोड़ी थी.कितनी बार मेरे स्कूटर ने मुझे गिरने से बचाया, बहुत बार मैंने उसे फिसलने या स्किड करने से बचाया, एक दो बार तो खुद को चोट लगा कर भी स्कूटर ने मुझे बचाया है.जब भी स्कूटर की हालत अच्छी नहीं होती थी और मुझे आशंका होती थी की रस्ते में स्कूटर कहीं खराब न हो जाए तो मैं रस्ते भर स्कूटर से बातें करते हुए आता था..'यार प्लीज खराब मत होना..थोड़ी दूर और चलो..देखो घर अब नज़दीक ही है..प्लीज बंद मत पड़ना"..
लड़कियों को खूब घुमाया भी है स्कूटर से और स्कूटर चलाने देने के बहाने दोस्तों से खूब समोसे भी खाए हैं.पटना में मेरे हर आवारगी और घुमक्कडी का गवाह रहा है ये स्कूटर.पटना की गलियों में, सड़कों पर बेधड़क फिरते रहते थे हम...पूरी स्पीड में..कितनी बार इसने तो मेरा मान भी रखा है..सड़कों पर मोटरबाईक और कार से भी तेज चल कर..अब ये बुढा हो गया.लाईटें कमज़ोर पड़ गयी हैं और ज़रा सा स्पीड में चलाने से ये हांफने और खासने लगता है.इसकी बिगड़ती सेहत का इलाज भी अब जल्दी कहीं होता नहीं.आँखों(हेडलाईट)का इलाज तो कितनी बार करवाया, लेकिन फिर भी रौशनी कम की कम ही रही.जूते(ब्रेक-शू) भी इसके घिसे रहते हैं हमेशा.कहीं भी जाना होता है तो बड़ा धीरे धीरे चलाना होता है इसे..इस बार तो जब घर पे था तो मैं हर शाम स्कूटर से ही निकलता था, ये सोच की की इसी बहाने इसकी सैर भी हो जायेगी..माँ कहती भी थी, स्कूटर खराब है, कहाँ जाओगे?गाडी से चले जाओ..अब मैं माँ को कैसे समझाता की हम दोनों एक दूसरे का ख्याल रखना अच्छे से जानते हैं.. :)
एक दिन की बात है, मैं घर से निकला था एक दोस्त के घर जाने के लिए..लेकिन अपने घर की सीढ़ियों से उतरने के क्रम में ही मैंने फैसला किया की उसके यहाँ नहीं जाऊँगा.फिर क्या था, मैं और स्कूटर निकल पड़े, उन गलियों में जहाँ हम कभी शान से चलते थे.स्कूटर अब बुढा हो गया है तो धीरे धीरे चलता है, ऐसे में मुझे कितनी बार ये लगा की स्कूटर जान बुझ कर उन जगहों पर धीरे चलने लगता है जहाँ से अपनी कुछ यादें जुड़ी हुई थी..मुझे ऐसा लगा उस दिन की जैसे स्कूटर मुझसे कह रहा हो..."देखो यहाँ मैं पंचर हुआ था और यहाँ से ही तुम दो किलोमीटर तक मुझे घसीटते हुए ले गए थे..", "देखो यहाँ तुम मुझे बहुत जबरदस्त टक्कर दिलवाने वाले थे लेकिन मेरे अच्छे ग्रिप के वजह से तुम बच गए, और मैं भी..." (etc...etc..etc..
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ये धुन याद है आपको?
[ कुछ पुरानी यादों के नशे में : पार्ट १६ ]
अब भी जैसे धुंधली सी याद है, मैं चौथी या पांचवीं क्लास में था शायद..स्कूल में जिन दोस्तों के पास बजाज सुपर स्कूटर रहता था वो सब एक ग्रुप में नाचते हुए गाते थे..'बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर...हमारा बजाज..हमारा बजाज..'.इनमे कुछ ऐसे लड़के भी थे जिनके पास दूसरा कोई स्कूटर था और वो हमारे ग्रुप में आकार गाना गाते और नाचते थे, फिर एक दिन जब हमारे एक साथी ने देखा की उन लड़कों के पापा एल.एम्.एल वेस्पा से आते हैं तो उन्हें अपने ग्रुप से हमने निकाल दिया, यह कह कर की ये विदेशी है, गद्दार है, धोखे से हमारे ग्रुप में घुस गया था.हमें बड़ा नाज़ होता था खुद पर की हमारे पास वो स्कूटर है जिसका प्रचार दूरदर्शन पर दिखाया जाता है.जब पापा हमें घुमाने ले जाते थे तो हम बड़ा खुश होते थे की 'हमारा बजाज' वाले सुपरस्टार स्कूटर से हम घूमने निकले हैं.मन ही मन खुद को सड़कों का महराजा भी मान लेते थे, और एल.एम्.एल वालों से तो इतनी चिढ़ थी, हम सभी दोस्तों को की उस स्कूटर की सौ बुराईयां करते नहीं थकते थे.बुराई करने में कभी कभी मैं थोडा पीछे रहता था, क्यूंकि मेरे गाँव में बड़े पापा के पास भी एल.एम्.एल वेस्पा स्कूटर ही था, और वो मुझे बड़ा अच्छा लगता था ;)
अब भी अच्छे से याद है, जब हमारा स्कूटर थोडा पुराना हुआ और उसमे इधर उधर थोड़ी खरोंचे लगी तो पापा ने उसपर नया रंग चढ़वा दिया.पीला बजाज सुपर अब हरा हो गया था.कुछ दिन तो लगे इस नए हरे रंग को अपनाने में लेकिन मुश्किल जैसा कुछ भी नहीं था.स्कूटर नया हो गया था और हम हर रोज इसकी अच्छे से सफाई करते थे..जब मैं स्कूटर चलाना सीख रहा था, उस समय का एक वाकया याद आ रहा है...मेरे भैया मुझे स्कूटर सीखाने ले गए..सड़क पर एक आंटी जा रहीं थीं, और भैया मुझे बार बार ब्रेक लगाने को कह रहे थे, और मैं ब्रेक के बजाये बार बार होर्न बजा रहा था..भैया ने बहुत कोशिश कि की पैर नीचे रखकर स्कूटर को रोकें, लेकिन आंटी से टक्कर होना तय था तो हुआ..आंटी नर्म दिल कि थी, बिना ज्यादा गुस्सा हुए मुझे उन्होंने माफ कर दिया..स्कूटर सीखने के क्रम में ये मेरी पहली और आखरी टक्कर थी.
जब दसवीं में गया तो शाम के बाद स्कूटर की चाबी लगभग हाथ में ही रहती थी.अगल बगल से कुछ लाना हुआ तो भी स्कूटर से ही जाना होता था.स्कूटर और मेरे बीच दोस्ती भी लगभग उन्ही दिनों हुई जब मैं दसवीं में था और 'जॉन्डिस' बिमारी से उबरा ही था..हर शाम लगभग स्कूटर से ही कोचिंग जाता था, उस समय माँ मुझे साइकिल चलाने के लिए मना करती थी, कहती थी की थकावट हो जायेगी.फिर क्या था, शाम का शमां होता था.. स्कूटर और मैं..हम दोनों खूब बातें करते हुए, गाते हुए कोचिंग जाते थे.कोचिंग में अपना रुतबा भी ऐसा होता था की दोस्त लोग आगे पीछे घूमते रहते थे.."अभिषेक, ज़रा चाबी दो न, एक चक्कर लगा कर आयेंगे".."अबे यार बस उस कोना तक ही जायेंगे...चाहो तो तीन रुपया ले लो..उससे जादा का पेट्रोल नहीं जरेगा"... लगभग कोचिंग मैं हमेशा स्कूटर से ही जाने लगा..लेकिन फिर भी मुझे स्कूटर से स्कूल जाने की परमिसन नहीं थी...ये एक तमन्ना दिल में ही दब के रह गयी.मेरे ख्याल से उस समय मैं स्कूटर बड़े अच्छे से चला लेता था और पापा-मम्मी भी ये बात जानते थे लेकिन फिर भी मुझे स्कूल जाने की परमिसन नहीं मिलती थी(खैर इस बार घर जाऊँगा तो मम्मी से इस बात के लिए लडूंगा भी).
फिर जब मैं बारहवीं में था तब एक फिल्म आई थी "गॉन ईन सिक्सटी सेकण्ड".इस फिल्म से मैं बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ(अंग्रेजी में यह मेरी अब तक की सबसे पसंदीदा फिल्म है,पता नहीं किस कारण से..पचासों बार देख चूका हूँगा इस फिल्म को).उस समय मुझे कारों के बारे में जानकारी इकठ्ठा करने का शौक था और उसपर से रैंडल मेम्फिस रेन्स(फिल्म में अभिनेता निकलस केज का किरदार) की कारों की प्रति अविश्वसनीय दीवानगी मुझे अपनी तरफ हमेशा से खींचती चली गयी(कभी फुर्सत से इस फिल्म के ऊपर भी बहुत कुछ लिखूंगा).फिल्म के एक सीन में जब निकलस केज अपनी महबूबा एलेनोर(Eleanor,1967 Shelby GT500) से पहली बार बातें करता है तो उस पल को मैं वास्तव में महसूस कर सकता था(और हूँ).निकलस केज एलेनोर से कहता है "मैं जानता हूँ की मेरे वजह से तुम बहुत बार मुसीबत में फंसी हो, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा, वादा करता हूँ मैं...तुम मेरा ख्याल रखना और मैं तुम्हारा ख्याल रखूँगा".इस फिल्म में मैं निकलस केज और एलेनोर के बीच हुए संवाद को बड़े अच्छे से खुद से रिलेट कर सकता हूँ.उन दिनों मेरी और मेरे स्कूटर की भी कुछ ऐसी ही जोड़ी थी.कितनी बार मेरे स्कूटर ने मुझे गिरने से बचाया, बहुत बार मैंने उसे फिसलने या स्किड करने से बचाया, एक दो बार तो खुद को चोट लगा कर भी स्कूटर ने मुझे बचाया है.जब भी स्कूटर की हालत अच्छी नहीं होती थी और मुझे आशंका होती थी की रस्ते में स्कूटर कहीं खराब न हो जाए तो मैं रस्ते भर स्कूटर से बातें करते हुए आता था..'यार प्लीज खराब मत होना..थोड़ी दूर और चलो..देखो घर अब नज़दीक ही है..प्लीज बंद मत पड़ना"..
लड़कियों को खूब घुमाया भी है स्कूटर से और स्कूटर चलाने देने के बहाने दोस्तों से खूब समोसे भी खाए हैं.पटना में मेरे हर आवारगी और घुमक्कडी का गवाह रहा है ये स्कूटर.पटना की गलियों में, सड़कों पर बेधड़क फिरते रहते थे हम...पूरी स्पीड में..कितनी बार इसने तो मेरा मान भी रखा है..सड़कों पर मोटरबाईक और कार से भी तेज चल कर..अब ये बुढा हो गया.लाईटें कमज़ोर पड़ गयी हैं और ज़रा सा स्पीड में चलाने से ये हांफने और खासने लगता है.इसकी बिगड़ती सेहत का इलाज भी अब जल्दी कहीं होता नहीं.आँखों(हेडलाईट)का इलाज तो कितनी बार करवाया, लेकिन फिर भी रौशनी कम की कम ही रही.जूते(ब्रेक-शू) भी इसके घिसे रहते हैं हमेशा.कहीं भी जाना होता है तो बड़ा धीरे धीरे चलाना होता है इसे..इस बार तो जब घर पे था तो मैं हर शाम स्कूटर से ही निकलता था, ये सोच की की इसी बहाने इसकी सैर भी हो जायेगी..माँ कहती भी थी, स्कूटर खराब है, कहाँ जाओगे?गाडी से चले जाओ..अब मैं माँ को कैसे समझाता की हम दोनों एक दूसरे का ख्याल रखना अच्छे से जानते हैं.. :)
एक दिन की बात है, मैं घर से निकला था एक दोस्त के घर जाने के लिए..लेकिन अपने घर की सीढ़ियों से उतरने के क्रम में ही मैंने फैसला किया की उसके यहाँ नहीं जाऊँगा.फिर क्या था, मैं और स्कूटर निकल पड़े, उन गलियों में जहाँ हम कभी शान से चलते थे.स्कूटर अब बुढा हो गया है तो धीरे धीरे चलता है, ऐसे में मुझे कितनी बार ये लगा की स्कूटर जान बुझ कर उन जगहों पर धीरे चलने लगता है जहाँ से अपनी कुछ यादें जुड़ी हुई थी..मुझे ऐसा लगा उस दिन की जैसे स्कूटर मुझसे कह रहा हो..."देखो यहाँ मैं पंचर हुआ था और यहाँ से ही तुम दो किलोमीटर तक मुझे घसीटते हुए ले गए थे..", "देखो यहाँ तुम मुझे बहुत जबरदस्त टक्कर दिलवाने वाले थे लेकिन मेरे अच्छे ग्रिप के वजह से तुम बच गए, और मैं भी..." (etc...etc..etc..
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ये धुन याद है आपको?
[ कुछ पुरानी यादों के नशे में : पार्ट १६ ]
जो बीबी से करे प्यार वो है आदर्श पति, और जो करे अपने वाहन से प्यार वो असली घुमक्कड।
ReplyDeleteहम तो जानते हैं अपनी गाड़ी से प्यार करना...मेरे पास एक काइनेटिक फ्लाइट है...मैं अक्सर उससे गपियाते चलती हूँ। यहाँ ठंढ के कारण कभी कभी स्टार्ट होने में थोड़ा टाइम लगता है...मैं बड़बड़ करती रहती हूँ, नखरे मत करो...चल लो, अच्छा दो दिन नहीं चलाये...बाबा वीकेंड था न। भाव मत खाओ, वगैरह वगैरह। सोचती हूँ अपार्टमेंट के लोग देखते हैं तो पागल ही समझते होंगे :D और ये बातें मन मे थोड़े करती हूँ, बोल के करती हूँ :)
ReplyDeleteमुझे वाकई लगता है की बाइक नाराज़ हो गयी है। तुम्हारी पोस्ट से पूरी तरह रिलेट कर पा रही हूँ। मेरे पापा के पास राजदूत है...तो वही चलाना सीखा था। पहला प्यार थी मेरी साइकिल, स्ट्रीट कैट, जब थ्री में पढ़ती थी तो क्लास में फर्स्ट करने पर नानाजी के खरीद के दी थी। उस दुकान की सबसे महंगी साइकिल थी 1660 रुपये की...मुहल्ले में सबसे पहले मेरे पास साइकिल थी...क्या कहें उसके किस्से...लंबी हो जाएगी कहानी, कभी पोस्ट लिखूँगी मैं भी।
बहुत दूर दूर तक घुमवा दिया तुमने ... मानना पड़ेगा 'तुम्हारे बजाज' की माइलेज अच्छी है !
ReplyDeleteकितनी प्यारी सी पोस्ट है..
ReplyDeleteसबके पास हों ऐसी यादें..ऐसे दोस्त...
हमने भी दुपहिया चलना "हमारा बजाज " पर ही सीखा था.
ReplyDeleteवाह काफी प्यार किया है तुम ने अपने स्कूटर से. पर एक बात रह गई यार मेरा परिचय नहीं करवाया अपने प्यारे दोस्त से. इस बार मत चूकना जरूर मिलवाना अपने प्यारे दोस्त से.
ReplyDeleteऔर कितने इत्तेफाक की बात है की मैं ने भी पहली बार बजाज स्कूटर ही चलाया था वो थी बजाज चेतक. मेरे भी चेतक के साथ काफी किस्से हैं.
इश्टाट कैसे करते थे??? एक साइड में झुका कर??
ReplyDeleteMazaa aa gaya! Is tarah kee baten mai apne silayee machine se kiya kartee thee!
ReplyDeleteबड़ी प्यारी पोस्ट है... कितनी ही यादें समेट ली आपने!
ReplyDeleteएक प्यारी सी साइकिल थी मेरे पास, पिताजी का लम्ब्रेटा भी बहुत याद आता है।
ReplyDeleteकितनी ही यादें ताज़ा कर गयी आपकी पोस्ट !
ReplyDeleteआभार !
आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - ब्लॉग जगत से कोहरा हटा और दिखा - ब्लॉग बुलेटिन
ReplyDeletesuper post ... i had my scooty n now bike ... with a similar relation ..! :)
ReplyDeleteहमारे बजाज की कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें हमारे पास भी है...... एकदम अपनी सी लगी पोस्ट ....
ReplyDeleteअभी जी ,:-) यह तो गलत बात है भई से इतनी भी नाराजगी अच्छी नहीं lml vaspaa se ...हमारे पास भी यही था विदेशी हुआ तो क्या हुआ चलता तो हमारे देश में ही था न ;)बचपन कि यादों को ताज़ा कर दिया आज आपकी इस पोस्ट ने बहुत बढ़िया पोस्ट ...
ReplyDeleteवे भी क्या ज़माने थे ...
ReplyDeleteबिलकुल वो धुन -हमारा बजाज - आज भी कानों में गूँजती है
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