अच्छे लोगों के साथ अच्छा दिन बिताने के शायद कुछ साईड इफैक्ट भी होते हैं..इंसान इतना खुश होता है की उसे बहुत सी चीज़ों का होश ही नहीं रहता..मेरे साथ कई बार होता है की जब कोई दिन बहुत अच्छा बीतता है तो उस दिन कुछ न कुछ गड़बड़ हो जाती है..जैसे परसों की ही बात करता हूँ..
शिखा दीदी(शिखा वार्ष्णेय) के साथ पूरा दिन बिताया मैंने..पहले पुस्तक मेला फिर पुरानी दिल्ली हम दोनों घूमें..हम ग़ालिब हवेली में घूम रहे थे और मोबाइल से तस्वीरें ले रहे थे...इसी चक्कर में मैंने मोबाइल पॉकेट में रख दिया, शायद कैमरा ऑन रह गया और कुछ एप्लीकेसन भी खुले रह गए थे...शाम हुई तो हम वहां से निकल गए, जब मैं मेट्रो में बैठकर वापस घर लौट रहा था तो मैंने मोबाइल जेब से निकला..देखा कैमरा ऑन था, और कैमरा बैटरी सेविंग मोड में था.मैंने जल्दी से कैमरे के एप्लीकेसन को बंद किया, गैलरी में देखा तो पंद्रह बीस फोटो खींच गए थे, पॉकेट में रखे हुए ही..पुरे ब्लैंक..इसपर ने नज़र हटी तो देखा कई दोस्तों के व्हाट्सएप(मेसेजिंग सर्विस) मेसेज आये हुए हैं...मैंने जब व्हाट्सएप खोला और मेसेज पढ़ा सबके तो हैरान रह गया...मेरे मोबाइल से अंट-संट मेसेज बिना सर-पैर वाले खुद ब खुद टाईप होकर दोस्तों के पास चले गए थे..और सब हैरान थे की क्या हो गया मुझे जो ऐसे मेसेज भेज रहा हूँ...
स्क्रीनशॉट्स देखिये आप ज्यादा बेहतर समझेंगे...
जब मैंने ये मेसेज्स देखे थे, मेरा हँसते हँसते बुरा हाल था...इन चारों के अलावा तीन और दोस्तों को मेसेज गया है लेकिन वो शायद अभी व्हाट्सएप इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो उनका जवाब अब तक नहीं आया है...देखते हैं उनका जवाब क्या आता है. :)
ऐसी दुर्घटनाएं मेरे साथ अक्सर होती रहती हैं...तीन चार वैसे ही किस्से सुनाता हूँ आपको...
२००९ की बात है शायद...रुचिका बैंगलोर आई थी, और संजय नगर में वैभव थिएटर के पास उसने मुझे मिलने के लिए बुलाया था.मैं अपने दोस्त की बाईक लेकर उससे मिलने गया था.जाहिर सी बात है, उससे मिलकर बहुत ख़ुशी हुई थी, उसने अचानक उस शाम फोन कर के खबर दी थी की वो बैंगलोर में है, और मैंने कभी एक्स्पेक्ट नहीं किया था की उससे बैंगलोर में यूँ मुलाकात होगी.इस वजह से वो मुलाकात और ख़ास हो गयी थी..मैं वापस लौट रहा था, बहुत खुश था..की पता नहीं क्या हुआ, कैसे हुआ...संजय नगर और बेल रोड के इन्टर्सेक्शन पर एक पोल से जाकर मैं टकरा गया था...हालांकि बाईक से मैं गिरा नहीं, और नाही चोट आई लेकिन अब तक वो रहस्य का विषय है की सड़क के एकदम किनारे उस पोल से मैं जाकर आखिर टकरा कैसे गया?
२००९ की ही बात है, मेरी दोस्त दिव्या बैंगलोर आई थी, वो भी रुचिका की तरह अचानक आ धमकी थी..वो अमेरिका में रहती है, मुझे ये भी उसने नहीं बताया था की वो इंडिया आ रही है.दोपहर उसने फोन किया की शाम में बैंगलोर के कोरमंगला इलाके में मिलने आओ.उससे मिलकर वापस आया तो जाहिर सी बात है ख़ुशी तो अपने चरम पर होगी ही...मैं वापस बस से आया था..मेजेस्टिक से मैंने बस ली थी..बस खाली थी, और मैं जाकर सीट पर बैठ गया था..२७६ नंबर का बस का वो कंडक्टर मुझे शक्ल से पहचानता था..उसे ये पता था की मैं आमतौर पर 'पास' लेकर चलता हूँ, तो वो मेरे पास टिकट के लिए आया नहीं...लेकिन कुछ देर बाद पता नहीं क्या उसके दिमाग में आया होगा...वो आया मेरे पास और पूछता है मुझसे, सर टिकट लेनी है आपको या पास है?. मैं फोन पर दिव्या से टेक्स्टमेसेजिंग के जरिये चैट कर रहा था...और ध्यान भी नहीं दिया की वो खड़ा है, जब ध्यान उसके तरफ गया तो मैंने कहा "हाँ, टिकट दे दो.."
उसने पूछा मुझसे "कहाँ का...?"
मेरे जबान से पता नहीं कैसे और क्यों निकल गया "वर्जिनिया का..."
उसने पूछा "क्या? कहाँ का?" मैंने फिर कहा.. "कोलराडो का..." (ये दिव्या से चैट का असर था, इन दो शहरो के नाम बार बार आ रहे थे, और मेरे जबान से पता नहीं कैसे ये दो नाम निकल गए)
वो कन्फ्यूज्ड और आसपास वाले एक दो लोग हंसने लगे...मुझे तुरंत अहसास हुआ की मैंने कितना बड़ा ब्लंडर कर दिया है..कंडक्टर भी हँसने लगा था..मैंने फिर आहिस्ते से कंडक्टर से कहा..."देवसांद्रा का टिकट दे दो यार..."
कंडक्टर तो वापस चला गया लेकिन मैं पुरे रास्ते कितना एम्बैरस महसूस कर रहा था क्या बताऊँ? :)
२०१० की बात बताऊँ तो, स्तुति और प्रशांत से मिलना हुआ था.वापस स्तुति को उसके घर ड्राप कर मैं और प्रशांत लौट रहे थे स्तुति के घर के ही सामने गली में एक ऑटो वाले से थोड़ी टक्कर हो गयी.उस टक्कर को हालांकि टक्कर नहीं कहेंगे, बल्कि गाड़ी बैक करते वक़्त जरा सा ऑटो से गाड़ी जा टकरा गयी थी.कुछ दिन पहले प्रशांत ने फेसबुक पर इस घटना का जिक्र किया था, और मैंने जवाब में यही कहा था..की उस दिन तुम दोनों से मिलकर हम इतना खुश थे की उसी ख़ुशी के नशे में जाकर टकरा गए थे ऑटो वाले से.
अभी हाल की ही एक बात बताऊँ तो पंद्रह अगस्त की बात ले लीजिये...सोनल जी के घर पर देवांशु, सोनल जी और शिखा दी से मिलकर वापस आया.दिन बहुत खूबसूरत बीता था.मैं वापस घर आया और गैस पर दूध चढ़ाया गर्म करने के लिए और अपनी बहन से फोन पर बात करने लगा.सोनल जी के घर हुई मुलाकात के बारे में उसे बताने लगा, और मैं भूल गया की मैंने दूध चढ़ा रखा है गैस पर...कुछ देर बाद देखता हूँ तो पुरे गैस और स्लैब पर और फर्श पर दूध गिरा पड़ा है और गैस खुद ब खुद बुझ गया था.जल्दी से मैंने गैस बंद किया और किचन की सफाई की.
सच में कभी कभी लगता है की इन्सान थोडा बौरा सा जाता है जब वो जरूरत से ज्यादा खुश हो जाता है तो...:)
जब अच्छा दिन बीत जाता है तब सारे दिन मन उल्लास से भरा रहता है और तब की हुई गलतियों पर बस बरबस हंसी ही आती है । यह 'हैंग ओवर' ऐसे ही बना रहेगा जब तक कोई अगला हादसा नहीं हो जाता ।
ReplyDeleteखूब खुश रहो हमेशा बौराए हुए
ReplyDelete...सदा मगन मैं रहना जी ... :)
ReplyDelete:) रोचक! ऐसे ही मजे से रहो।
ReplyDeleteभला हो कि आपका मोबाइल अच्छा है कि रैण्डम शब्द भेजे, यदि तनिक भी दुष्ट होता तो साबुन से भी अधिक साफ़ धो देता।
ReplyDeleteये बौराना भी हर एक के बस का नहीं होता. बौराते रहो यूँ ही जल्दी जल्दी :):)
ReplyDeleteशुभकामनायें...... बनी रहे ख़ुशी और खुश रहने का माहौल....
ReplyDeleteबौराना आदमियत की निशानी है अभिषेक जी....शुभकामनायें.
ReplyDelete:D
ReplyDeleteखुशी में बोरा जाना तो आम बात है ... फिर खुशी दिल से हो तो सब कुछ जायज है ...
ReplyDeleteमज़ा आया आपके प्रसंग जान के ...
आज मन में खिन्नता व उदासी थी । यह पोस्ट पढकर बरसब हँसी आगई ।
ReplyDeleteआज मन में खिन्नता व उदासी थी । यह पोस्ट पढकर बरसब हँसी आगई ।
ReplyDeleteआज मन में खिन्नता व उदासी थी । यह पोस्ट पढकर बरसब हँसी आगई ।
ReplyDeleteआज मन में खिन्नता व उदासी थी । यह पोस्ट पढकर बरबस ही हँसी आगई ।
ReplyDeleteये ख़ुशी हरदम कायम रहे----शुभकामनाएं
ReplyDelete"ज्योति"
आग्रह है यहां भी पधारें
कब तलक बैठें---
पहली बार आपके ब्लाग पर आना हुआ...मेरा आना सार्थक था..आपकी पोस्ट पढ़कर बहुत अच्छा लगा... चेहरे पर हंसी आई... शुक्रिया
ReplyDeleteदुबारा पढ़ा यहाँ आकर...फिर से याद आ गया सब कुछ...:)
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